डाइबिटीज़ को कैसे जीता जाये ?

मधुमेह की बिमारी में लोगों को आजीवन अपने ब्लड शुगर के स्तर को प्रतिदिन प्रबंधित करने की ज़रुरत पड़ती है। इस बिमारी से निपटने के लिए मैक्स हॉस्पिटल्स के एंडोक्रिनोलॉजी एंड डायबिटीज के चेयरमैन और प्रमुख डॉ अंबरीश मिथल ने अनेक प्रतिक्रियाएं साझा की ।

उनका अनुसार डाइबिटीज़ से पीड़ित लोगों दो तरह का स्वाभाव दर्शातें हैं -

एक वह लोगों हैं जो अपनी स्थिति को पूरी तरह से खारिज करते है। इनमें कोई भी दिखाई देने वाले लक्षण नहीं होते और इसलिए ये लोग पहले 2-3 वर्ष इनकार में रहते हैं, और आवश्यक जीवन शैली में बदलाव करने में धीमी होते हैं।

दुसरे वह विपरीत गुट हैं जो अत्यधिक सक्रिय होता ह। यह "नियंत्रक" मानते हैं कि वे दवा के बिना अपनी स्थिति को उलट सकते हैं। इस गुट के लिए, डॉ अम्बरीश सावधानी बरतने की सलाह देते हैं। वह कहते हैं कि अचानक, अत्यधिक मुश्किल और चरम जीवन शैली का संशोधन करने में यह खतरा है कि यह लंबे समय के लिए टिकाऊ नहीं होता।

आगे वह कहते हैं कि कुछ लोग "हेल्थ फार्म्स" का दौरा करने और अपने ब्लड शुगर के स्तर पर तुरंत नियंत्रण पाने का विकल्प चुनते हैं। डॉ मिथल मानते हैं कि अनुशासन और नियंत्रण पर ध्यान देने से, अक्सर तत्काल प्रभाव पड़ता है, परन्तु यह भी एक अल्पकालिक उपाय है, जो काम समय के लिए प्रभावी है। सामान्य स्थिति में लौटने पर, ज्यादातर पुरानी आदतें वापस आ जाती हैं।

डाइबिटीज़ को मात देने के लिए उनका मंत्र है - अपनी जीवनशैली को धीरे-धीरे तब तक संशोधित करें जब तक आप अपने रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने के लिए अपने चरम पर नहीं पहुंच जाते। यह एक "यथार्थवादी और व्यावहारिक दृष्टिकोण" है।

वे कहते हैं, मलेरिया के उपरान्त डाइबिटीज़ एक ऐसी बीमारी है जिससे निपटने का बेहतर तरीका है धीमी लेकिन स्थायी परिवर्तन लाना। यह किसी के पेशेवर या व्यक्तिगत जीवन को बाधित किए बिना स्थिति को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने में मदद करेगा।

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