प्री- डायबेटिक्स और तनाव के बारे में एक काउंसलर की राय
माइंड और बॉडी विशेषज्ञ आशिमा शुक्ला प्री डाइबिटीज़ वाले लोगों के मानसिक व्यवहार के बारे में अपने प्रतिक्रिया और सुझाव बताती हैं
आशिमा के अनुसार प्री डाइबिटीज़ डायग्नोसिस होने के बाद रोगियों में आम तौर पर दो तरह की प्रतिक्रया होती है:
1. जो इस स्थिति को आकस्मिक रूप से लेते हैं;
2. अन्य जो बहुत चिंतित, भयभीत और तनावग्रस्त हो जाते हैं और उनको यह लगता है कि उन्हें भविष्य में पूर्ण विकसित मधुमेह होने वाला है। डॉ शुक्ला कहतीं हैं कि ये दोनों प्रतिक्रियाएं गलत हैं और इस निदान को वास्तविक रूप से स्वीकार करना चाहिए ।
डॉ शुक्ला कहतीं हैं कि ये दोनों प्रतिक्रियाएं गलत हैं और इस निदान को वास्तविक रूप से स्वीकार करना चाहिए । जबकि मधुमेह एक आजीवन स्थिति है जिसे कभी भी हल्के में नहीं लेना चाहिए, लेकिन इसकी वजह से तनावग्रस्त होकर अपनी नीदं भी नहीं खोनी चाहिए।
आशिमा ने पुष्टि की कि प्री डाइबिटीज़ को एक अवसर के रूप में माना जाना चाहिए जहां आप अपने स्वास्थ्य का बेहतर नियंत्रण करने के लिए जीवन शैली में बदलाव कर सकते हैं।
आशिमा मरीज़ों से आग्रह करती है कि वे तनाव को नज़रअंदाज़ न करें और परिवार / दोस्तों या काउंसलर से बात करें। यह रोगियों को एक स्पष्ट दृष्टिकोण प्राप्त करने में मदद करेगा जो एक उपचार योजना तैयार करने में मदद करेगा।
जाहिर है, बदलाव मुश्किल होता है। आशिमा बताती हैं:
1. Take stock of your situation
2. Re-evaluate improvements required in your lifestyle
3. Get self-aware that will keep you centered to deal with this condition better.
उसके अनुसार, प्री डाइबिटीज़ रोगियों में से 50% को भविष्य में डाइबिटीज़ हो जाता है, लेकिन आप शेष 50% लोगों में से हो सकते हैं जो इस स्थिति को उलट सकते हैं।
इस समय, परिवार बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एक मज़बूत परिवार का समर्थन, रोगियों को प्रेरित करता है और अनुशासित रहने के लिए प्रोत्साहित करता है जो एक प्रीबायोटिक् और मधुमेह के साथ रहने वालों के लिए आवश्यक है।
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