डाॅक्टर धीरज कपूर, सीनियर कंसल्टेंट एंडोक्रिनोलॉजी के प्रमुख, आर्टेमिस अस्पताल, दिल्ली, बताते हैं कि, जेस्टेशनल डायबिटीज़़ का पता सबसे पहले गर्भावस्था के समय चलता हैं, क्योंकि गर्भावस्था के दौरान कुछ ऐसे हार्मोन्स होते हैं, जो कि बढ़ जाते हैं और इन्सुलिन को अपना काम नहीं करने देते |
यह गर्भावस्था के 26 से 28 हफ्ते में बढ़ता हैं, लेकिन बाकी देशों के मुकाबले भारतीयों को डायबिटीज़़ (मधुमेह) का खतरा ज्यादा होता हैं, इसलिए गर्भावस्था में हर तिमाही (ट्रायमेस्टर ) इसकी जांच करानी चाहिए | और अगर डायबिटीज़़ होने का पता चलता हैं तो सारे जरूरी उपचार भी लेने चाहिए |
प्रसव के बाद भी करीब 35% से 45% संभावना होती हैं कि आपको डायबिटीज़़ की समस्या हो सकती हैं| गर्भावस्था के समय जब डायबिटीज़़ का पता चलता हैं ,तब तो सभी प्रकार की सावधानी और इलाज लिया जाता हैं, लेकिन प्रसव के बाद भी अपना अच्छी तरह ख्याल रखने से डायबिटीज़़ से बचा जा सकता हैं | गर्भावस्था के दौरान होने वाले जेस्टेशनल डायबिटीज़़ का असर बच्चे पर भी हो सकता हैं, इसकी वजह से बच्चे को हार्ट प्रोब्लेम्स, स्पाइनल कार्ड, लंग्स मेच्योर न हो पाना और बच्चे के विकलांग होने की भी संभावना होती हैं|
होने वाली माँ को अगर जेस्टेशनल डायबिटीज़़ हैं तो माँ और बच्चे को और भी कई समस्या हो सकती हैं| समय पर लिया गया सही उपचार ही दोनों को स्वस्थ्य रख सकता हैं |
और अधिक जानकारी के लिए देखें - https://www.youtube.com/watch?v=hAYXe27VZ3w&feature=youtu/be.