कीमोथेरेपी

कीमोथेरेपी कैंसर के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला उपचार है और कैंसर के उपचार के लिए इस्तेमाल की जाने वाली औषधियों को निर्देशित करता है जिसके उद्देश्य हैं इलाज, कंट्रोल और उपशमन।

अधिकांश कीमोथेरेपी (कीमो) औषधियाँ तेज़ दवाइयाँ होतीं हैं जिन्हें आमतौर पर नियमित अंतराल पर दिया जाता है, जिन्हें चक्र (साइकिल) कहा जाता है - जो एक या एक से अधिक औषधियों की खुराक होती है और बाद में कई दिन या हफ़्ते बिना उपचार के होते हैं। यह सामान्य सेल्स को औषधि के दुष्प्रभावों से उबरने का समय देता है।

अधिकतम लाभ के लिए, व्यक्ति को कीमो का पूरा कोर्स, पूरी खुराक प्राप्त करनी चाहिए और साइकिल को शेड्यूल पर रखना चाहिए। ज़्यादातर मामलों में, विशेष कैंसरों के उपचार के लिए औषधियों के सबसे प्रभावी खुराक और शेड्यूल क्लिनिकल ट्रायल्स (नैदानिक परीक्षणों) में टेस्ट करके खोजें गए हैं।

दुष्प्रभाव

भले कीमो औषधियाँ तेज़ी से बढ़ने वाले सेल्स को मारतीं हैं, वे दुष्प्रभाव के रूप में स्वस्थ सेल्स को भी नुकसान पहुँचाते हैं। कुछ दुष्प्रभावों से उबरने के लिए लिया गया समय एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में अलग-अलग होता है और यह आपके संपूर्ण स्वास्थ्य और आपको दी जाने वाली औषधियों पर निर्भर करता है। कई दुष्प्रभाव उपचार समाप्त होने के बाद काफ़ी जल्दी चले जाते हैं, लेकिन कुछ को पूरी तरह से दूर होने के लिए महीने लग सकते हैं।

कीमोथेरेपी के कुछ अधिक सामान्य दुष्प्रभाव हैं थकान, बालों का झड़ना, एनीमिया (रक्ताल्पता), मतली और उलटी, कब्ज, दस्त, घाव और निगलने पर दर्द होना। बालों का झड़ना कीमो उपचार का एक सामान्य दुष्प्रभाव है, लेकिन यह अस्थायी है क्योंकि अंतिम उपचार के बाद कुछ सप्ताहों में नए बालों आने शुरू हो जाते हैं।

वज़न कम होना और ऊर्जा की कमी समान रूप से आम है जिससे स्वस्थ खाद्य पदार्थों को खाना जारी रखना आवश्यक हो जाता है। कीमोथेरेपी का एक और आम दुष्प्रभाव डाइजेशन (पाचन) को प्रभावित करता है और आपके मुंह में मैटेलिक (धातु जैसा) स्वाद आ सकता है या आपकी जीभ पर कोई पीली या सफेद परत आ सकती है। मरीज़ को वायरस, बैक्टीरिया और अन्य कीटाणुओं के संपर्क में आने से बचना चाहिए क्योंकि कीमो के दौरान इम्यून सिस्टम कमज़ोर हो जाता है।

कीमोथेरेपी औषधियों से याददाश्त की समस्याएँ हो सकती हैं और ध्यान केंद्रित करना या स्पष्ट रूप से सोचना मुश्किल हो सकता है। इस लक्षण को कभी-कभी "कीमो फॉग" ("कीमो कोहरा") या "कीमो ब्रेन" ("कीमो दिमाग़") कहा जाता है। कीमोथेरेपी औषधियों से हार्मोन में परिवर्तन हो सकता है और इसके परिणामस्वरूप मूड स्विंग हो सकते हैं। कुछ मामलों में यौन क्रिया और फर्टिलिटी (प्रजनन क्षमता) भी प्रभावित हो सकती है।

कैंसर के साथ जीना और कीमोथेरेपी को संभालना भावनात्मक रूप से नुकसान पहुँचा सकता है। मरीज़ों को यह ज़बरदस्त लग सकता है और वे उदास भी हो सकते हैं जैसे वे काम, परिवार, और वित्तीय जिम्मेदारियों को टटोलते हैं या दर्द और परेशानी से निपटते हैं।

मालिश और ध्यान जैसी कॉम्प्लीमेंटरी थेरेपियाँ (पूरक चिकित्साएँ) आराम और राहत के लिए एक सहायक उपाय हो सकतीं हैं। कैंसर सहायता समूह, जहाँ आप कैंसर के उपचार से गुज़रने वाले अन्य लोगों के साथ बातचीत कर सकते हैं, सहायक होते हैं, लेकिन यदि अवसाद की भावनाएँ बनीं रहें, तो पेशेवर काउंसिलिंग की आवश्यकता पड़ सकती है।

उपचार लागत

यूनियन फॉर इंटरनेशनल कैंसर कंट्रोल (अंतरराष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण संघ) द्वारा चलाई जा रही विश्व कैंसर दिवस (वर्ल्ड कैंसर डे) की वेबसाइट का कहना है, "यह एक मिथक है कि कैंसर केवल एक स्वास्थ्य-संबंधी मुद्दा है। दरअसल, कैंसर परिवारों की आय कमाने की क्षमता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है, व उच्च उपचार लागतों के साथ उन्हें ग़रीबी की ओर और धकेलता है।" 

भारत सरकार के राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण कार्यक्रम का अनुमान है कि किसी भी समय देश में 2 से 2.5 मिलियन कैंसर के मरीज़ हैं। 2010 में एक बीसीजी अध्ययन के अनुसार, वर्तमान में मौजूद 200 कैंसर केंद्रों के विपरीत, भारत को कम से कम 840 की आवश्यकता थीं। यह अनुमान है कि भारत में केवल 2000 ऑन्कोलॉजिस्ट हैं, जबकि इससे तीन गुना की आवश्यकता है। यह स्पष्ट है कि डॉक्टरों की कमी कैंसर देखभाल प्रदान करने वाले अस्पतालों की संख्या को नुकसान पहुँचाएगा। एक फुल-फ्लेज (सभी सुविधाओं वाले) कैंसर अस्पताल की स्थापना करना कैपिटल-इंटेंसिव (पूंजी-गहन) होता है - एक शहर में 100-बिस्तर के अस्पताल में कथित तौर पर 50 करोड़ की लागत आ सकती है। और मानव संसाधन भी, डॉक्टरों से लेकर नर्सों तक और तकनीशियनों तक, एक सतत चुनौती है। कैंसर के इलाज में लाखों रुपये लगते हैं, विशेषकर जब एडवांस्ड स्टेज (उन्नत चरणों) में रोग का पता चलता है, जिसमें सर्जरी या व्यापक उपचार की आवश्यकता पड़ती है। एक अनुमान के अनुसार, एक कैंसर रोगी वाले 45 से अधिक प्रति शत परिवारों को भयावह ख़र्चो का सामना करना पड़ता है और 25 प्रति शत गरीबी रेखा (बीपीएल) से नीचे धकेल दिए जाते हैं। बढ़ते हुए खर्चों से निपटने का एकमात्र तरीक़ा है मेडिकल बीमा और चूंकि भारत ने स्वास्थ्य में बहुत अधिक निवेश नहीं देखा है, इसलिए आगे यह एक लंबा रास्ता है।

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