कैंसर को समझना

कैंसर को समझना

कैंसर का डायग्नोसिस डरावना और भयभीत करने वाला होता है, फिर भी शायद ही कभी समझा जाता है। भले भारत और दुनिया भर में कैंसर के मामले बढ़ने की ओर इशारा करते हैं, फिर भी आमतौर पर बड़े 'सी' के रूप में निर्देशित इस बीमारी के कारणों और इलाजों के बारे में बहुत कम समझ के साथ इसके चारों ओर रहस्य की एक भावना का बना रहना जारी है। कैंसर के डायग्नोसिस के बाद आम तौर पर मरीज़ के साथ-साथ देखभालकर्ता के लिए चिंता, तनाव और भय की तीव्र अवधियों का अनुसरण होता है। पहली बार अपने कैंसर का पता चलने पर, कैंसर फाइटर्स सदमे की भावनाओं को पुनः याद करते हैं, तत्पश्चात क्रोध और इनकार की भावनाओं को, अकसर उसके आसपास के मिथकों की वजह से।
कई सवाल सामने आते हैं तथा "यह मेरे साथ कैसे हो सकता है?" से लेकर "मेरी कोई बुरी आदत नहीं है, तो मैं क्यों?" तक उठते हैं और इसके बाद अनिवार्य रूप से वह मंडराता अकथ्य प्रश्न उठता है कि "क्या मैं इससे जीवित बच पाऊँगा या पाऊँगी?"। भले ये सवाल मरीज़ों और देखभाल करने वालों को घेरते हैं, डॉक्टर, ऑन्कोलॉजिस्ट और कैंसर सहायता समूह हमें आश्वस्त करते हैं कि कैंसर का डायग्नोसिस मौत की सज़ा नहीं है। सही परिस्थितियों को देखते हुए, कोई भी कैंसर को कंट्रोल कर सकता है और जीत भी सकता है। कैंसर के बारे में सटीक जानकारी और एक बेहतर समझ निश्चित रूप से इसके आसपास की नकारात्मकता को कम करने में मदद करेगी ताकि इसका अन्य स्वास्थ्य अवस्थाओं की तरह उपचार किया जा सकें। 'कैंसर फाइटर्स' और 'कैंसर थ्राइवर्स' ने इस शोध के दौरान हमारे साथ अपनी यात्रा साझा की है और लंबे समय तक चलने वाले उपचार से निपटने के लिए और बड़े 'सी' को पराजित करने के लिए सही जानकारी और एक तनाव मुक्त मन के महत्व को एको (प्रतिध्वनित) किया हैं।

क्या आप जानते थे?

यूनानी शब्द 'ऑन्कोस' और 'कार्सिनोस' का श्रेय हिप्पोक्रेट्स को जाता है और वे क्रमशः एक 'सौम्य सूजन' और एक 'घातक सूजन' को निर्देशित करते हैं।

कैंसर क्या है?

कैंसर, एक शब्द जो बहुत भय और काफ़ी अनिश्चितता से घिरा हुआ है, सेल्स के अनियंत्रित विकास को निर्देशित करता है जो सामान्य टिश्यू में घुसकर डैमेज पहुँचाता है। ये सेल्स 'ट्यूमर' नामक किसी मास (द्रव्यमान) का निर्माण कर सकते हैं जो घातक या सौम्य हो सकता है। एक घातक ट्यूमर बढ़ता है और शरीर के अन्य हिस्सों में फैलता है जबकि एक सौम्य ट्यूमर बढ़ सकता है लेकिन फैलेगा नहीं।

के लक्षण

कैंसर आम तौर पर सामान्य अंगों, नर्व और ब्लड वेसल्स (रक्त वाहिकाओं) को डिस्टॉर्ट (विकृत) करता है जिससे शरीर के उस विशेष भाग से संबंधित लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। कैंसर फैलने वाले पहले स्थानों में से एक है लिम्फ नोड्स (लसीका पर्व) - वे बीज के आकार के अंग हैं जो गर्दन में, ग्रॉइन (उरुसंधि) में और बाजुओं के नीचे गुच्छों में स्थित होते हैं।

भले बुखार, थकान और वज़न घटने जैसे सामान्यीकृत लक्षण उन कैंसरों में आम हैं जो अपने उत्पत्ति के स्थान से परे फैल गए हैं, यह कैंसर का आकार और आक्रामकता है जो इसके लक्षणों को निर्धारित करता है।

कैंसर के प्रकार

  • कार्सिनोमा - ये सबसे आम प्रकार के कैंसर हैं और त्वचा या टिश्यू में शुरू होते हैं जो आंतरिक अंगों और ग्रंथियों की सतह को कवर करते हैं। कार्सिनोमा आमतौर पर ठोस ट्यूमर बनाते हैं।
  • सार्कोमा - ये उन टिश्यू में शुरू होते हैं जो शरीर को सपोर्ट और कनेक्ट करते हैं। एक सार्कोमा फैट, मांसपेशियों, नर्व (तंत्रिकाओं), टेंडन (पेशियों), जोड़ों, ब्लड वेसल्स (रक्त वाहिकाओं), लिम्फ वेसल्स (लसीका वाहिकाओं), कार्टिलेज (उपास्थि) या हड्डी में विकसित हो सकता है।
  • ल्यूकेमिया - ये रक्त के कैंसर होते हैं और तब शुरू होते हैं जब स्वस्थ ब्लड सेल्स (रक्त कोशिकाएँ) बदल जाते हैं और अनियंत्रित रूप से बढ़ने लगते हैं।
  • लिम्फोमा - यह वह कैंसर है जो लिम्फैटिक सिस्टम (लसीका प्रणाली) में शुरू होता है। लिम्फैटिक सिस्टम वेसल्स और ग्रंथियों का एक नेटवर्क है जो इन्फेक्शन से लड़ने में मदद करता है।

रिस्क फैक्टर (जोखिम कारक)

भले ही कैंसर के 75 प्रति शत से अधिक मामले 55 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोगों में डायग्नोज़ किए जाते हैं, अकेली बढ़ती उम्र कैंसर के लिए रिस्क फैक्टर नहीं है। आंकड़े बताते हैं कि 5 से 10 प्रति शत कैंसर जेनेटिक रूप से विरासत में मिलते हैं और वे कैंसर जीवन में प्रारंभ में आने लगते हैं।

रिस्क फैक्टर में शामिल हो सकते हैं जेनेटिक्स (आनुवांशिकी) (बीआरसीए जीन, उदाहरण के लिए), जीवनशैली (जैसे धूम्रपान, आहार और धूप से टैन होना), पर्यावरणीय अनावरण या हानिकारक पदार्थों की उपस्थिति। वायरल और बैक्टीरियल इन्फेक्शन से भी कुछ कैंसर हो सकते हैं, जैसे कि लीवर कैंसर में हेपेटाइटिस वायरस, पेट के कैंसर में हेलिकोबैक्टर पाइलोरी और सर्वाइकल कैंसर में एचपीवी वायरस।

कैंसर के स्टेज

स्टेज 0: इस स्टेज पर कैंसरों की पहचान उस स्थान के अनुसार की जाती हैं, जहाँ वे शुरू में उभरे थे और गुना हुए थे, तथा परिणामस्वरूप ट्यूमर पास के टिश्यूज़ में नहीं फैला होता है। स्टेज 0 कैंसर का प्रोग्नोसिस (रोगनिदान) होना बहुत अच्छा है और इम्यून सिस्टम को बढ़ावा देने से कैंसर उलट सकता है।

स्टेज 1: छोटे कैंसर वाले ट्यूमर पास के टिश्यू में फैल चुकें हो लेकिन परे नहीं फैलें होते हैं, जैसे कि ब्लड स्ट्रीम या लिम्फ सिस्टम (लसीका प्रणाली) में। "प्रारंभिक स्टेज" कैंसर का प्रोग्नोसिस (रोगनिदान) होना भी काफी अच्छा है, तथा स्वस्थ परिवर्तनों के साथ इसकी वापसी को प्रिवेंट किया जा सकता है।

स्टेज 2 और 3: "रीजनल स्प्रेड (क्षेत्रीय प्रसार)" यह इंगित करता है कि कैंसर का आसपास के टिश्यू में विस्तार हुआ है और वह जड़ चुका है। भले ही यह स्टेज चिंता का कारण हो सकता है, कैंसर शरीर में अन्य अंगों में नहीं फैला है।

स्टेज 4: जब कैंसर प्रारंभिक स्थल से शरीर के अन्य अंगों या क्षेत्रों में फैलता है, तो इसे "डिस्टेंट स्प्रेड (दूरस्थ प्रसार)" कैंसर, एडवांस्ड कैंसर (उन्नत कैंसर) या मेटास्टेटिक कैंसर (अपररूपांतरित कैंसर या रूप-परिवर्तित कैंसर) कहा जाता है। मेटास्टेसिस (अपररूपांतरण या रूप-परिवर्तन) कैंसर सेल्स का, जहाँ वे पहली बार बनें थे उस जगह से शरीर के अन्य हिस्से में, प्रसार या फैलाव को निर्देशित करता है।

क्या आप जानते थे?
भले कैंसर से इतना सारा डर जुड़ा हुआ है, आँकड़े पूरी तरह से निराशाजनक नहीं हैं।
1. पूरी दुनिया में कैंसर से डायग्नोज़ हुए लगभग 70% लोग पाँच साल से अधिक समय तक जीवित रहते हैं।
2. बचपन के कैंसर के 85% से अधिक मामले इलाज योग्य हैं।
3. यहाँ तक कि सबसे प्रतिरोधी कैंसर, जैसे मेलनोमा, इम्यून-मोड्यूलेटिंग (प्रतिरक्षा-आपरिवर्ती) उपचारों का जवाब देते हैं।

कैंसरवाद

कैंसर सर्वाइवर्स अकसर एक कलंक से जूझते हैं जिसे जागरूकता के ज़रिए हटाया जा सकता है। नई दिल्ली में HOPE ऑन्कोलॉजी क्लिनिक के प्रसिद्ध ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ अमीश वोरा 'कैंसरवाद' के खिलाफ चेतावनी देते हैं, जो नस्लवाद और लिंगवाद से भी बदतर है क्योंकि इसे सटीक रूप से इंगित करना कठिन है। “कैंसर इन्फेक्शस (संक्रामक) नहीं है, फिर भी लोग उनसे दूरी बनाते हैं जो इससे डायग्नोज़ हुए हैं और मरीज़ों को अकसर सोशलाइज़ करना मुश्किल होता है। जॉब इंटरव्यू के दौरान या रिश्तों में भी उनके साथ भेदभाव किया जा सकता है", वोरा समझाते है।

फैक्ट शीट (तथ्य पत्रक)

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, सबसे आम प्रकार के कैंसर जो पुरुषों को फ्रीक्वेंसी के क्रम में मारते हैं, वे हैं लंग कैंसर (फेफड़ों का कैंसर), पेट का कैंसर, लीवर कैंसर, कोलोरेक्टल कैंसर (मलाशय कैंसर) और ईसोफेगल कैंसर (ग्रसिका कैंसर)। डब्ल्यूएचओ के आंकड़े बताते हैं कि पाँच सबसे आम कैंसर जो महिलाओं को फ्रीक्वेंसी के क्रम में मारते हैं, वे हैं स्तन कैंसर, लंग कैंसर (फेफड़ों का कैंसर), पेट का कैंसर, कोलोरेक्टल कैंसर (मलाशय कैंसर) और सर्वाइकल कैंसर (गर्भग्रीवा कैंसर)। विशेषज्ञ ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ (कर्नल) आर रंगा राव के अनुसार, भारत में हर साल 17 लाख नए मरीज़ कैंसर से डायग्नोज़ होते हैं, जो चीन और अमेरिका के बाद कैंसर के मामलों में तीसरे स्थान पर हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर प्रिवेंशन रिसर्च (एनआईसीपीआर) के आंकड़ों से पता चलता है कि स्तन कैंसर से नई-नई डायग्नोज़ हुई हर दो महिलाओं में, देश में एक महिला की उससे मृत्यु हो जाती है, और लगभग आधी मिलियन मौतें बीमारी के बारे में अज्ञानता के कारण होती हैं। भारत में हर 8 मिनट में एक महिला की सर्वाइकल कैंसर (गर्भग्रीवा कैंसर) से मृत्यु हो जाती है। लगभग एक तिहाई कैंसर तम्बाकू के इस्तेमाल के कारण होते हैं जबकि शराब और तम्बाकू मिलकर मौखिक और अन्य कैंसरों के विकसित होने के उच्च जोखिम पैदा करते हैं।

ग्लोबोकैन के विश्वव्यापी डेटा बताते हैं कि 2012 में, कैंसर के 14.1 मिलियन नए मामले सामने आए, कैंसर से 8.2 मिलियन कैंसर मौतें हुईं और डायग्नोसिस के 5 वर्षों के भीतर 32.6 मिलियन लोग कैंसर के साथ जी रहें थे। उन नए कैंसर के मामलों में से 57% (8 मिलियन), कैंसर से होने वाली मृत्युओं में से 65% (5.3 मिलियन), और 5-साल वाले प्रचलित कैंसर के मामलों में से 48% (15.6 मिलियन) कम विकसित क्षेत्रों में सामने आए। कुल एज-स्टैण्डर्डाज़्ड कैंसर इंसिडेंस रेट (आयु-मानकीकृत कर्करोग घटना दर) महिलाओं की तुलना में पुरुषों में लगभग 25% अधिक है, जिसमें दर है प्रति 100000 व्यक्ति-वर्ष में क्रमशः 205 और 165 मामले।

एंटी-कैंसर डाइट (कैंसर-विरोधी आहार)

खाने का रोगों से एक महत्वपूर्ण संबंध है और (कीमोथेरेपी के दौरान) कैंसर को प्रिवेंट करने या उससे लड़ने के लिए इम्युनिटी के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने के परिणामस्वरूप प्लांट-बेस्ड (वनस्पति-आधारित) आहारों पर शोध हुआ है जो कैंसर को प्रिवेंट करने में मदद करते हैं। कुछ वनस्पति के केमिकल सीधे तौर पर कैंसर सेल्स से लड़ते हैं, जबकि अन्य कैंसर के जोखिम को कम करने के लिए एक स्वस्थ इम्यून सिस्टम को बढ़ावा देते हैं। फल, सब्ज़ियाँ, चॉकलेट, चाय, और वाइन को फायदेमंद माना जाता है क्योंकि इनमें पॉलीफेनोल होते हैं। फ्लेवनॉइड और करोटिनॉइड से युक्त मसाले और जड़ी-बूटियाँ भी ऑक्सीकरण और सूजन को कम करतीं हैं और वे इस प्रकार कई लाभ प्रदान करतीं हैं।

कैंसर पर अधिक पढ़ने के लिए, नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें,

https://famhealth.in/hi/infocus-detail/cancer/

कीमोथेरेपी

कीमोथेरेपी कैंसर के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला उपचार है और कैंसर के उपचार के लिए इस्तेमाल की जाने वाली औषधियों को निर्देशित करता है जिसके उद्देश्य हैं इलाज, कंट्रोल और उपशमन।

अधिकांश कीमोथेरेपी (कीमो) औषधियाँ तेज़ दवाइयाँ होतीं हैं जिन्हें आमतौर पर नियमित अंतराल पर दिया जाता है, जिन्हें चक्र (साइकिल) कहा जाता है - जो एक या एक से अधिक औषधियों की खुराक होती है और बाद में कई दिन या हफ़्ते बिना उपचार के होते हैं। यह सामान्य सेल्स को औषधि के दुष्प्रभावों से उबरने का समय देता है।

अधिकतम लाभ के लिए, व्यक्ति को कीमो का पूरा कोर्स, पूरी खुराक प्राप्त करनी चाहिए और साइकिल को शेड्यूल पर रखना चाहिए। ज़्यादातर मामलों में, विशेष कैंसरों के उपचार के लिए औषधियों के सबसे प्रभावी खुराक और शेड्यूल क्लिनिकल ट्रायल्स (नैदानिक परीक्षणों) में टेस्ट करके खोजें गए हैं।

दुष्प्रभाव

भले कीमो औषधियाँ तेज़ी से बढ़ने वाले सेल्स को मारतीं हैं, वे दुष्प्रभाव के रूप में स्वस्थ सेल्स को भी नुकसान पहुँचाते हैं। कुछ दुष्प्रभावों से उबरने के लिए लिया गया समय एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में अलग-अलग होता है और यह आपके संपूर्ण स्वास्थ्य और आपको दी जाने वाली औषधियों पर निर्भर करता है। कई दुष्प्रभाव उपचार समाप्त होने के बाद काफ़ी जल्दी चले जाते हैं, लेकिन कुछ को पूरी तरह से दूर होने के लिए महीने लग सकते हैं।

कीमोथेरेपी के कुछ अधिक सामान्य दुष्प्रभाव हैं थकान, बालों का झड़ना, एनीमिया (रक्ताल्पता), मतली और उलटी, कब्ज, दस्त, घाव और निगलने पर दर्द होना। बालों का झड़ना कीमो उपचार का एक सामान्य दुष्प्रभाव है, लेकिन यह अस्थायी है क्योंकि अंतिम उपचार के बाद कुछ सप्ताहों में नए बालों आने शुरू हो जाते हैं।

वज़न कम होना और ऊर्जा की कमी समान रूप से आम है जिससे स्वस्थ खाद्य पदार्थों को खाना जारी रखना आवश्यक हो जाता है। कीमोथेरेपी का एक और आम दुष्प्रभाव डाइजेशन (पाचन) को प्रभावित करता है और आपके मुंह में मैटेलिक (धातु जैसा) स्वाद आ सकता है या आपकी जीभ पर कोई पीली या सफेद परत आ सकती है। मरीज़ को वायरस, बैक्टीरिया और अन्य कीटाणुओं के संपर्क में आने से बचना चाहिए क्योंकि कीमो के दौरान इम्यून सिस्टम कमज़ोर हो जाता है।

कीमोथेरेपी औषधियों से याददाश्त की समस्याएँ हो सकती हैं और ध्यान केंद्रित करना या स्पष्ट रूप से सोचना मुश्किल हो सकता है। इस लक्षण को कभी-कभी "कीमो फॉग" ("कीमो कोहरा") या "कीमो ब्रेन" ("कीमो दिमाग़") कहा जाता है। कीमोथेरेपी औषधियों से हार्मोन में परिवर्तन हो सकता है और इसके परिणामस्वरूप मूड स्विंग हो सकते हैं। कुछ मामलों में यौन क्रिया और फर्टिलिटी (प्रजनन क्षमता) भी प्रभावित हो सकती है।

कैंसर के साथ जीना और कीमोथेरेपी को संभालना भावनात्मक रूप से नुकसान पहुँचा सकता है। मरीज़ों को यह ज़बरदस्त लग सकता है और वे उदास भी हो सकते हैं जैसे वे काम, परिवार, और वित्तीय जिम्मेदारियों को टटोलते हैं या दर्द और परेशानी से निपटते हैं।

मालिश और ध्यान जैसी कॉम्प्लीमेंटरी थेरेपियाँ (पूरक चिकित्साएँ) आराम और राहत के लिए एक सहायक उपाय हो सकतीं हैं। कैंसर सहायता समूह, जहाँ आप कैंसर के उपचार से गुज़रने वाले अन्य लोगों के साथ बातचीत कर सकते हैं, सहायक होते हैं, लेकिन यदि अवसाद की भावनाएँ बनीं रहें, तो पेशेवर काउंसिलिंग की आवश्यकता पड़ सकती है।

उपचार लागत

यूनियन फॉर इंटरनेशनल कैंसर कंट्रोल (अंतरराष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण संघ) द्वारा चलाई जा रही विश्व कैंसर दिवस (वर्ल्ड कैंसर डे) की वेबसाइट का कहना है, "यह एक मिथक है कि कैंसर केवल एक स्वास्थ्य-संबंधी मुद्दा है। दरअसल, कैंसर परिवारों की आय कमाने की क्षमता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है, व उच्च उपचार लागतों के साथ उन्हें ग़रीबी की ओर और धकेलता है।" 

भारत सरकार के राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण कार्यक्रम का अनुमान है कि किसी भी समय देश में 2 से 2.5 मिलियन कैंसर के मरीज़ हैं। 2010 में एक बीसीजी अध्ययन के अनुसार, वर्तमान में मौजूद 200 कैंसर केंद्रों के विपरीत, भारत को कम से कम 840 की आवश्यकता थीं। यह अनुमान है कि भारत में केवल 2000 ऑन्कोलॉजिस्ट हैं, जबकि इससे तीन गुना की आवश्यकता है। यह स्पष्ट है कि डॉक्टरों की कमी कैंसर देखभाल प्रदान करने वाले अस्पतालों की संख्या को नुकसान पहुँचाएगा। एक फुल-फ्लेज (सभी सुविधाओं वाले) कैंसर अस्पताल की स्थापना करना कैपिटल-इंटेंसिव (पूंजी-गहन) होता है - एक शहर में 100-बिस्तर के अस्पताल में कथित तौर पर 50 करोड़ की लागत आ सकती है। और मानव संसाधन भी, डॉक्टरों से लेकर नर्सों तक और तकनीशियनों तक, एक सतत चुनौती है। कैंसर के इलाज में लाखों रुपये लगते हैं, विशेषकर जब एडवांस्ड स्टेज (उन्नत चरणों) में रोग का पता चलता है, जिसमें सर्जरी या व्यापक उपचार की आवश्यकता पड़ती है। एक अनुमान के अनुसार, एक कैंसर रोगी वाले 45 से अधिक प्रति शत परिवारों को भयावह ख़र्चो का सामना करना पड़ता है और 25 प्रति शत गरीबी रेखा (बीपीएल) से नीचे धकेल दिए जाते हैं। बढ़ते हुए खर्चों से निपटने का एकमात्र तरीक़ा है मेडिकल बीमा और चूंकि भारत ने स्वास्थ्य में बहुत अधिक निवेश नहीं देखा है, इसलिए आगे यह एक लंबा रास्ता है।

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कैंसर क्या है?

दर्द से निपटना

कैंसर या उपचारों से होने वाला दर्द दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों को प्रभावित कर सकता है और सोने और खाने में परेशानी पैदा कर सकता है और यहाँ तक कि चिड़चिड़ापन, निराशा, दुःख और गुस्सा महसूस करा सकता है। अच्छी खबर यह है कि सभी दर्द का इलाज किया जा सकता है और अधिकांश दर्द को कंट्रोल किया जा सकता है या राहत दी जा सकती है। जब दर्द कंट्रोल किया जाता है, तो लोग बेहतर ढंग से सो सकते हैं और खा सकते हैं, परिवार और दोस्तों के साथ आनंद ले सकते हैं, और अपने काम और शौक़ जारी रख सकते हैं।

दर्द अकसर कैंसर के ही कारण होता है। दर्द की मात्रा कैंसर के प्रकार, उसके स्टेज और मरीज़ के दर्द की सीमा पर निर्भर करती है। कैंसर के किसी एडवांस्ड स्टेज (उन्नत चरण) वाले लोगों में दर्द होने की संभावना अधिक होती है, जो हड्डियों, नर्व (तंत्रिकाओं) या शरीर के अंगों पर किसी ट्यूमर के दबाव के कारण हो सकती है। सर्जरी अकसर कैंसर के उपचार का हिस्सा होती है और आमतौर पर दर्द की कुछ मात्रा की अपेक्षा की जा सकती है। सर्जरी के कारण दर्द कुछ दिनों से लेकर कुछ हफ्तों तक रह सकता है, जो सर्जरी के प्रकार पर निर्भर करता है।
जब कोई ट्यूमर रीढ़ में फैलता है, तो यह रीढ़ की हड्डी पर दबाव डाल सकता है और स्पाइनल कॉर्ड कम्प्रेशन (रीढ़ की हड्डी के संपीड़न) का कारण बन सकता है। अन्य समय, कैंसर हड्डियों में फैलता है जिससे हड्डियों में दर्द होता है जिसका एक्सटर्नल रेडिएशन (बाहरी विकिरण) के माध्यम से इलाज किया जा सकता है।

कैंसर को डायग्नोज़ करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कुछ टेस्ट्स दर्द का कारण बन सकते हैं और आमतौर पर प्रक्रिया के बाद इससे राहत मिलती है। भले ही जब आपको बताया जाता है कि प्रक्रिया से होने वाले दर्द से बचा नहीं जा सकता है या यह लंबे समय तक नहीं रहता है, तब भी आप ज़रूरत पड़ने पर दर्द की दवा मांग सकते हैं। आपके दर्द का प्रकार उपचार के प्रकार को निर्धारित करता है। नियमित शेड्यूल पर दर्द की दवाइयाँ लेने से क्रॉनिक दर्द को कंट्रोल किया जा सकता है। क्रॉनिक दर्द वाले लोगों को भी ब्रेकथ्रू (चीरने वाला) दर्द हो सकता है जो तीव्रता में अलग-अलग होता है और आमतौर पर इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। यह आम तौर पर उस दर्द के राहत से "चीर निकलता" है जो उन्हें नियमित दर्द की दवा लेने से मिल रहा था।

फैंटम दर्द (आभास दर्द) सर्जरी का एक लंबे समय तक टिकने वाला प्रभाव है, जो सामान्य सर्जिकल दर्द से परे होता है। यदि आपका कोई एक हाथ, पैर, या यहाँ तक कि एक स्तन हटाया गया हो, तो आप फिर भी दर्द या अन्य असामान्य या अप्रिय भावनाओं को महसूस कर सकते हैं जो शरीर के अनुपस्थित (फैंटम/आभास वाले) हिस्से से आती हुईं लगतीं हैं। दर्द के अन्य प्रकार हैं:

  • परिधीय न्यूरोपैथी (परिधीय तंत्रिकाविकृति) (पीएन)। जलन, झुनझुनी, सुन्नता, कमज़ोरी, क्लम्ज़ीनेस (ठीक न लगना), चलने में परेशानी या हाथों और बाजुओं और / या पैरों और पाँवों में असामान्य महसूस होना मुख्य संकेत हैं।
  • परिधीय न्यूरोपैथी कुछ प्रकार की कीमोथेरेपी, विटामिन की कमी, कैंसर और अन्य समस्याओं के कारण नर्व डैमेज (तंत्रिका क्षति) की वजह से होती है।
  • मुंह के छाले (स्टोमटाइटिस या म्यूकोसाइटिस [श्लेष्माशोथ])। कीमोथेरेपी से मुंह और गले में घाव (छाले) और दर्द हो सकते हैं। दर्द से लोगों को खाने, पीने और यहाँ तक कि बात करने में भी परेशानी हो सकती है।
  • रेडिएशन म्यूकोसाइटिस (विकिरण श्लेष्माशोथ) और अन्य रेडिएशन चोटों से त्वचा की जलन, म्यूकोसाइटिस (मुंह के छाले), और निशान पड़ सकते हैं - ये सभी दर्द का कारण बन सकते हैं। गला, आंत और ब्लैडर (मूत्राशय) को भी रेडिएशन इंजरी से ग्रस्त होने का ख़तरा हैं, और यदि इन क्षेत्रों का इलाज किया जाता हैं तो आपको दर्द हो सकता है।

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कैंसर

कैंसर

कैंसर के साथ जीने वाले लोगों के दोस्त और परिवार

यूनानी शब्द 'ऑन्कोस' ने एक सौम्य सूजन का वर्णन किया था जबकि एक घातक सूजन को 'कार्सिनोस’ कहा गया था,
जिसके कारण लैटिन शब्द 'कैंसर' आया जिसका श्रेय हिप्पोक्रेट्स को दिया जाता है।

कैंसर को समझना

कैंसर, एक शब्द जो बहुत भय और काफ़ी अनिश्चितता से घिरा हुआ है, सेल्स के अनियंत्रित विकास को निर्देशित करता है जो सामान्य टिश्यू में घुसकर डैमेज पहुँचाता है। ये सेल्स 'ट्यूमर' नामक किसी मास (द्रव्यमान) का निर्माण कर सकते हैं जो घातक या सौम्य हो सकता है। एक घातक ट्यूमर बढ़ता है और शरीर के अन्य हिस्सों में फैलता है जबकि एक सौम्य ट्यूमर बढ़ सकता है लेकिन फैलेगा नहीं।

परिवार और देखभालकर्ताओं की भूमिका

मरीज़ की देखभाल करने वाले देखभालकर्ता होते हैं और उनकी कई भूमिकाएँ होती हैं। ये भूमिकाएँ बदल जाती हैं जैसे-जैसे कैंसर के उपचार के दौरान और बाद में मरीज़ों की ज़रूरतें बदलती हैं। कई मामलों में, देखभालकर्ता वह व्यक्ति होता है जो मरीज़ के साथ बीतने वाली हर चीज़ को जानता है क्योंकि वे औषधियाँ देने, दुष्प्रभावों को मैनेज करने, समस्याओं को रिपोर्ट करने, खाने की खरीदारी करने और तैयार करने, घर की सफाई करने और कपड़े धोने, बिलों का भुगतान करने, इत्यादि में शामिल होंगे।

उपचार के दौरान चुनौतियाँ

कैंसर के प्रकार और स्टेज के आधार पर, कैंसर उपचार में आमतौर पर किसी कॉम्बिनेशन में सर्जरी (शल्यक्रिया), कीमोथेरेपी, रेडिएशन थेरेपी (विकिरण चिकित्सा) और इम्यूनोथेरेपी शामिल हो सकते हैं। जहाँ सर्जरी और रेडिएशन कैंसर सेल्स को निकालते हैं, मारते हैं, या क्षति पहुंचाते हैं, कीमोथेरेपी मूल (प्राथमिक) ट्यूमर से दूर, शरीर के कुछ हिस्सों में फैलने वाले (मेटास्टेसिस हुए) कैंसर सेल्स को मार सकती है।

इम्यूनोथेरेपी - कैंसर थेरेपी में एक हालिया तरक्की और आशा

नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट (राष्ट्रीय कैंसर संस्थान) के अनुसार, इम्यूनोथेरेपी कैंसर के उपचार का ऐसा रूप है जो कैंसर से लड़ने के लिए इम्यून सिस्टम (प्रतिरक्षा प्रणाली) को बढ़ाता है। इम्यून सिस्टम आपके शरीर को इन्फेक्शन और अन्य बीमारियों से लड़ने में मदद करता है। इम्यूनोथेरेपी बायोलॉजिकल थेरेपी (जैविक चिकित्सा) का एक रूप है। बायोलॉजिकल थेरेपी एक प्रकार की ट्रीटमेंट है जो कैंसर के उपचार के लिए जीवों से सीधे तौर पर डिराइव्ड (व्युत्पन्न) पदार्थों का उपयोग करती है।

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