मानसिक स्वास्थ्य सहायता समूह
ये उन लोगों की प्रेरक कहानियां हैं, जिन्होंने दूर की है कैंसर के साथ जीने वाले लोगों के दोस्त और परिवार आपको प्रेरित रखेगा
Different types of immunotherapy are used to कैंसर के उपचारके लिए विभिन्न प्रकार की इम्यूनोथेरेपी (प्रतिरक्षा चिकित्सा) का उपयोग किया जाता है। ये उपचार या तो इम्यून सिस्टम (प्रतिरक्षा प्रणाली) को कैंसर पर सीधे तौर से हमला करने में मदद कर सकते हैं या इम्यून सिस्टम को अधिक सामान्य तरीके से उत्तेजित कर सकते हैं। इम्यूनोथेरेपी के प्रकार में निम्न शामिल हैं जो इम्यून सिस्टम को कैंसर के खिलाफ सीधे तौर से कार्रवाई करने में मदद करते हैं:
इम्यूनोथेरेपी के प्रकार में निम्न शामिल हैं जो कैंसर से लड़ने के लिए शरीर के इम्यून सिस्टम की प्रतिक्रिया को बढ़ाते हैं:
इम्यूनोथेरेपी कैंसर के ख़िलाफ़ कैसे काम करती है?
कैंसर आपके शरीर को नष्ट कर देता है क्योंकि यह मुख्य रूप से आपके इम्यून सिस्टम पर आक्रमण करता है। कुछ इम्यूनोथेरेपियाँ कैंसर सेल्स को निशाना बनातीं हैं और बाद में उन्हें मार देती हैं। अन्य इम्यूनोथेरेपियाँ आपके इम्यून सिस्टम को इस तरह से बढ़ाने में आपकी मदद करतीं हैं कि यह कैंसर सेल्स को नष्ट कर देता है। इम्यूनोथेरेपी एक नवीन कैंसर उपचार है। इम्यूनोथेरेपी अभी तक व्यापक रूप से सर्जरी, कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी (विकिरण चिकित्सा) के रूप में इस्तेमाल नहीं की जाती है। हालांकि, इम्यूनोथेरेपियाँ धीरे-धीरे महत्व प्राप्त कर रहीं हैं और कई डॉक्टरों द्वारा उपचार के एक चॉइस के रूप में व्यापक रूप से स्वीकार की जा रहीं हैं।
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कैंसर का डायग्नोसिस डरावना और भयभीत करने वाला होता है, फिर भी शायद ही कभी समझा जाता है। भले भारत और दुनिया भर में कैंसर के मामले बढ़ने की ओर इशारा करते हैं, फिर भी आमतौर पर बड़े 'सी' के रूप में निर्देशित इस बीमारी के कारणों और इलाजों के बारे में बहुत कम समझ के साथ इसके चारों ओर रहस्य की एक भावना का बना रहना जारी है। कैंसर के डायग्नोसिस के बाद आम तौर पर मरीज़ के साथ-साथ देखभालकर्ता के लिए चिंता, तनाव और भय की तीव्र अवधियों का अनुसरण होता है। पहली बार अपने कैंसर का पता चलने पर, कैंसर फाइटर्स सदमे की भावनाओं को पुनः याद करते हैं, तत्पश्चात क्रोध और इनकार की भावनाओं को, अकसर उसके आसपास के मिथकों की वजह से।
कई सवाल सामने आते हैं तथा "यह मेरे साथ कैसे हो सकता है?" से लेकर "मेरी कोई बुरी आदत नहीं है, तो मैं क्यों?" तक उठते हैं और इसके बाद अनिवार्य रूप से वह मंडराता अकथ्य प्रश्न उठता है कि "क्या मैं इससे जीवित बच पाऊँगा या पाऊँगी?"। भले ये सवाल मरीज़ों और देखभाल करने वालों को घेरते हैं, डॉक्टर, ऑन्कोलॉजिस्ट और कैंसर सहायता समूह हमें आश्वस्त करते हैं कि कैंसर का डायग्नोसिस मौत की सज़ा नहीं है। सही परिस्थितियों को देखते हुए, कोई भी कैंसर को कंट्रोल कर सकता है और जीत भी सकता है। कैंसर के बारे में सटीक जानकारी और एक बेहतर समझ निश्चित रूप से इसके आसपास की नकारात्मकता को कम करने में मदद करेगी ताकि इसका अन्य स्वास्थ्य अवस्थाओं की तरह उपचार किया जा सकें। 'कैंसर फाइटर्स' और 'कैंसर थ्राइवर्स' ने इस शोध के दौरान हमारे साथ अपनी यात्रा साझा की है और लंबे समय तक चलने वाले उपचार से निपटने के लिए और बड़े 'सी' को पराजित करने के लिए सही जानकारी और एक तनाव मुक्त मन के महत्व को एको (प्रतिध्वनित) किया हैं।
क्या आप जानते थे?
यूनानी शब्द 'ऑन्कोस' और 'कार्सिनोस' का श्रेय हिप्पोक्रेट्स को जाता है और वे क्रमशः एक 'सौम्य सूजन' और एक 'घातक सूजन' को निर्देशित करते हैं।
कैंसर क्या है?
कैंसर, एक शब्द जो बहुत भय और काफ़ी अनिश्चितता से घिरा हुआ है, सेल्स के अनियंत्रित विकास को निर्देशित करता है जो सामान्य टिश्यू में घुसकर डैमेज पहुँचाता है। ये सेल्स 'ट्यूमर' नामक किसी मास (द्रव्यमान) का निर्माण कर सकते हैं जो घातक या सौम्य हो सकता है। एक घातक ट्यूमर बढ़ता है और शरीर के अन्य हिस्सों में फैलता है जबकि एक सौम्य ट्यूमर बढ़ सकता है लेकिन फैलेगा नहीं।
के लक्षण
कैंसर आम तौर पर सामान्य अंगों, नर्व और ब्लड वेसल्स (रक्त वाहिकाओं) को डिस्टॉर्ट (विकृत) करता है जिससे शरीर के उस विशेष भाग से संबंधित लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। कैंसर फैलने वाले पहले स्थानों में से एक है लिम्फ नोड्स (लसीका पर्व) - वे बीज के आकार के अंग हैं जो गर्दन में, ग्रॉइन (उरुसंधि) में और बाजुओं के नीचे गुच्छों में स्थित होते हैं।
भले बुखार, थकान और वज़न घटने जैसे सामान्यीकृत लक्षण उन कैंसरों में आम हैं जो अपने उत्पत्ति के स्थान से परे फैल गए हैं, यह कैंसर का आकार और आक्रामकता है जो इसके लक्षणों को निर्धारित करता है।
कैंसर के प्रकार
रिस्क फैक्टर (जोखिम कारक)
भले ही कैंसर के 75 प्रति शत से अधिक मामले 55 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोगों में डायग्नोज़ किए जाते हैं, अकेली बढ़ती उम्र कैंसर के लिए रिस्क फैक्टर नहीं है। आंकड़े बताते हैं कि 5 से 10 प्रति शत कैंसर जेनेटिक रूप से विरासत में मिलते हैं और वे कैंसर जीवन में प्रारंभ में आने लगते हैं।
रिस्क फैक्टर में शामिल हो सकते हैं जेनेटिक्स (आनुवांशिकी) (बीआरसीए जीन, उदाहरण के लिए), जीवनशैली (जैसे धूम्रपान, आहार और धूप से टैन होना), पर्यावरणीय अनावरण या हानिकारक पदार्थों की उपस्थिति। वायरल और बैक्टीरियल इन्फेक्शन से भी कुछ कैंसर हो सकते हैं, जैसे कि लीवर कैंसर में हेपेटाइटिस वायरस, पेट के कैंसर में हेलिकोबैक्टर पाइलोरी और सर्वाइकल कैंसर में एचपीवी वायरस।
कैंसर के स्टेज
स्टेज 0: इस स्टेज पर कैंसरों की पहचान उस स्थान के अनुसार की जाती हैं, जहाँ वे शुरू में उभरे थे और गुना हुए थे, तथा परिणामस्वरूप ट्यूमर पास के टिश्यूज़ में नहीं फैला होता है। स्टेज 0 कैंसर का प्रोग्नोसिस (रोगनिदान) होना बहुत अच्छा है और इम्यून सिस्टम को बढ़ावा देने से कैंसर उलट सकता है।
स्टेज 1: छोटे कैंसर वाले ट्यूमर पास के टिश्यू में फैल चुकें हो लेकिन परे नहीं फैलें होते हैं, जैसे कि ब्लड स्ट्रीम या लिम्फ सिस्टम (लसीका प्रणाली) में। "प्रारंभिक स्टेज" कैंसर का प्रोग्नोसिस (रोगनिदान) होना भी काफी अच्छा है, तथा स्वस्थ परिवर्तनों के साथ इसकी वापसी को प्रिवेंट किया जा सकता है।
स्टेज 2 और 3: "रीजनल स्प्रेड (क्षेत्रीय प्रसार)" यह इंगित करता है कि कैंसर का आसपास के टिश्यू में विस्तार हुआ है और वह जड़ चुका है। भले ही यह स्टेज चिंता का कारण हो सकता है, कैंसर शरीर में अन्य अंगों में नहीं फैला है।
स्टेज 4: जब कैंसर प्रारंभिक स्थल से शरीर के अन्य अंगों या क्षेत्रों में फैलता है, तो इसे "डिस्टेंट स्प्रेड (दूरस्थ प्रसार)" कैंसर, एडवांस्ड कैंसर (उन्नत कैंसर) या मेटास्टेटिक कैंसर (अपररूपांतरित कैंसर या रूप-परिवर्तित कैंसर) कहा जाता है। मेटास्टेसिस (अपररूपांतरण या रूप-परिवर्तन) कैंसर सेल्स का, जहाँ वे पहली बार बनें थे उस जगह से शरीर के अन्य हिस्से में, प्रसार या फैलाव को निर्देशित करता है।
क्या आप जानते थे?
भले कैंसर से इतना सारा डर जुड़ा हुआ है, आँकड़े पूरी तरह से निराशाजनक नहीं हैं।
1. पूरी दुनिया में कैंसर से डायग्नोज़ हुए लगभग 70% लोग पाँच साल से अधिक समय तक जीवित रहते हैं।
2. बचपन के कैंसर के 85% से अधिक मामले इलाज योग्य हैं।
3. यहाँ तक कि सबसे प्रतिरोधी कैंसर, जैसे मेलनोमा, इम्यून-मोड्यूलेटिंग (प्रतिरक्षा-आपरिवर्ती) उपचारों का जवाब देते हैं।
कैंसरवाद
कैंसर सर्वाइवर्स अकसर एक कलंक से जूझते हैं जिसे जागरूकता के ज़रिए हटाया जा सकता है। नई दिल्ली में HOPE ऑन्कोलॉजी क्लिनिक के प्रसिद्ध ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ अमीश वोरा 'कैंसरवाद' के खिलाफ चेतावनी देते हैं, जो नस्लवाद और लिंगवाद से भी बदतर है क्योंकि इसे सटीक रूप से इंगित करना कठिन है। “कैंसर इन्फेक्शस (संक्रामक) नहीं है, फिर भी लोग उनसे दूरी बनाते हैं जो इससे डायग्नोज़ हुए हैं और मरीज़ों को अकसर सोशलाइज़ करना मुश्किल होता है। जॉब इंटरव्यू के दौरान या रिश्तों में भी उनके साथ भेदभाव किया जा सकता है", वोरा समझाते है।
फैक्ट शीट (तथ्य पत्रक)
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, सबसे आम प्रकार के कैंसर जो पुरुषों को फ्रीक्वेंसी के क्रम में मारते हैं, वे हैं लंग कैंसर (फेफड़ों का कैंसर), पेट का कैंसर, लीवर कैंसर, कोलोरेक्टल कैंसर (मलाशय कैंसर) और ईसोफेगल कैंसर (ग्रसिका कैंसर)। डब्ल्यूएचओ के आंकड़े बताते हैं कि पाँच सबसे आम कैंसर जो महिलाओं को फ्रीक्वेंसी के क्रम में मारते हैं, वे हैं स्तन कैंसर, लंग कैंसर (फेफड़ों का कैंसर), पेट का कैंसर, कोलोरेक्टल कैंसर (मलाशय कैंसर) और सर्वाइकल कैंसर (गर्भग्रीवा कैंसर)। विशेषज्ञ ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ (कर्नल) आर रंगा राव के अनुसार, भारत में हर साल 17 लाख नए मरीज़ कैंसर से डायग्नोज़ होते हैं, जो चीन और अमेरिका के बाद कैंसर के मामलों में तीसरे स्थान पर हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर प्रिवेंशन रिसर्च (एनआईसीपीआर) के आंकड़ों से पता चलता है कि स्तन कैंसर से नई-नई डायग्नोज़ हुई हर दो महिलाओं में, देश में एक महिला की उससे मृत्यु हो जाती है, और लगभग आधी मिलियन मौतें बीमारी के बारे में अज्ञानता के कारण होती हैं। भारत में हर 8 मिनट में एक महिला की सर्वाइकल कैंसर (गर्भग्रीवा कैंसर) से मृत्यु हो जाती है। लगभग एक तिहाई कैंसर तम्बाकू के इस्तेमाल के कारण होते हैं जबकि शराब और तम्बाकू मिलकर मौखिक और अन्य कैंसरों के विकसित होने के उच्च जोखिम पैदा करते हैं।
ग्लोबोकैन के विश्वव्यापी डेटा बताते हैं कि 2012 में, कैंसर के 14.1 मिलियन नए मामले सामने आए, कैंसर से 8.2 मिलियन कैंसर मौतें हुईं और डायग्नोसिस के 5 वर्षों के भीतर 32.6 मिलियन लोग कैंसर के साथ जी रहें थे। उन नए कैंसर के मामलों में से 57% (8 मिलियन), कैंसर से होने वाली मृत्युओं में से 65% (5.3 मिलियन), और 5-साल वाले प्रचलित कैंसर के मामलों में से 48% (15.6 मिलियन) कम विकसित क्षेत्रों में सामने आए। कुल एज-स्टैण्डर्डाज़्ड कैंसर इंसिडेंस रेट (आयु-मानकीकृत कर्करोग घटना दर) महिलाओं की तुलना में पुरुषों में लगभग 25% अधिक है, जिसमें दर है प्रति 100000 व्यक्ति-वर्ष में क्रमशः 205 और 165 मामले।
एंटी-कैंसर डाइट (कैंसर-विरोधी आहार)
खाने का रोगों से एक महत्वपूर्ण संबंध है और (कीमोथेरेपी के दौरान) कैंसर को प्रिवेंट करने या उससे लड़ने के लिए इम्युनिटी के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने के परिणामस्वरूप प्लांट-बेस्ड (वनस्पति-आधारित) आहारों पर शोध हुआ है जो कैंसर को प्रिवेंट करने में मदद करते हैं। कुछ वनस्पति के केमिकल सीधे तौर पर कैंसर सेल्स से लड़ते हैं, जबकि अन्य कैंसर के जोखिम को कम करने के लिए एक स्वस्थ इम्यून सिस्टम को बढ़ावा देते हैं। फल, सब्ज़ियाँ, चॉकलेट, चाय, और वाइन को फायदेमंद माना जाता है क्योंकि इनमें पॉलीफेनोल होते हैं। फ्लेवनॉइड और करोटिनॉइड से युक्त मसाले और जड़ी-बूटियाँ भी ऑक्सीकरण और सूजन को कम करतीं हैं और वे इस प्रकार कई लाभ प्रदान करतीं हैं।
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रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र ( सीडीसी ) के अनुसार, यदि 65 वर्ष की आयु के बाद उचित स्वास्थ्य देखभाल के उपाय किए जाते हैं, तो एक व्यक्ति अन्य व्यक्ति की अपेक्षा 19.3 साल तक अधिक जीवित रह सकता हैं।
लिटिल रॉक में चिकित्सा विज्ञान के लिए अरकंसास विश्वविद्यालय में रेनॉल्ड्स इंस्टीट्यूट के कार्यकारी निदेशक जीन वेई, पीएचई, एमडी, पीएचडी के अनुसार, जो लोग स्वस्थ जीवन शैली विकल्पों को अपनाते हैं, जैसे धूम्रपान छोड़ना और वजन कम करना, तो वे व्यक्ति उम्र से संबंधित स्वास्थ्य जोखिमों से बचने में स्वयं की मदद कर सकते हैं।
बुढ़ापे से सम्बंधित कुछ मुख्य बीमारियों की निम्नलिखित है।
1. व्यक्ति में गठिया रोग :
सीडीसी के अनुसार 49.7 प्रतिशत बुजुर्ग गठिया से पीड़ित हैं। बुजुर्ग व्यक्ति ज्यादातर ऑस्टियोआर्थराइटिस नामक दर्दनाक स्थिति से पीड़ित होते हैं, जो दर्दनाक है और बुजुर्गों में गतिशीलता को सीमित करता है।
2. उम्र के साथ हृदय रोग का होना :
बुजुर्ग व्यक्तियों में उच्च रक्तचाप और उच्च कोलेस्ट्रॉल जैसे जोखिम कारक होने के साथ , स्ट्रोक की तरह, हृदय के रोगों के विकास होने की उच्च प्रवृत्ति की संभावना होती हैं। व्यायाम के साथ-साथ संतुलित और लगातार भोजन खाने से बुजुर्गों को दिल से संबंधित विकारों से बचाया जा सकता है।
3. व्यक्तियों में कैंसर की संभावना :
सीडीसी की रिपोर्ट के अनुसार, 65 वर्ष से अधिक आयु के 28 प्रतिशत पुरुष और 21 प्रतिशत महिलाएं कैंसर से पीड़ित हैं। इसलिए नियमित जांच जैसे मैमोग्राम, कॉलोनोस्कोपी, और त्वचा की जाँच से विभिन्न प्रकार के कैंसर को रोका जा सकता है।
4. बुजुर्ग व्यक्ति में श्वसन संबंधी रोग :
सीडीसी ने बताया है कि पुरानी कम श्वसन संबंधी बीमारियां, जैसे कि क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), 65 और इससे अधिक उम्र के लोगों में मृत्यु का तीसरा सबसे आम कारण है। बुजुर्ग अस्थमा, पुरानी ब्रोंकाइटिस या वातस्फीति जैसे पुराने श्वसन संक्रमण से पीड़ित हो सकते हैं। ये समस्याएं बुजुर्गों को निमोनिया जैसी स्थितियों के लिए आसानी पैदा कर सकती हैं। शुरुआती जांच से बुजुर्गों में निमोनिया को रोका जा सकता है।
5. व्यक्ति में अल्जाइमर रोग का होना :
अल्जाइमर एसोसिएशन के अनुसार, नौ लोगों में से एक की उम्र 65 और उससे अधिक है, जो लगभग 11 प्रतिशत है, अल्जाइमर रोग पीड़ित है, लेकिन निदान चुनौतीपूर्ण है, क्योकि यह जानना मुश्किल है कि कितने लोग इस पुरानी स्थिति के साथ जी रहे हैं। एक प्रारंभिक चरण में इस बीमारी का निदान करने से शुरुआती पकड़ इससे निपटने में मदद मिल सकती है
6. ऑस्टियोपोरोसिस :
ऑस्टियोपोरोसिस बुजुर्गों में भी एक उम्र से संबंधित समस्या है, खासकर महिलाओं में, यह ऑस्टियोपोरोसिस कम गतिशीलता और बुजुर्गों में एक विक्षिप्त कद की ओर योगदान कर सकता है।
7. वयस्क व्यक्तियों में मधुमेह रोग की संभावना :
सीडीसी के अनुसार 65 और उससे अधिक उम्र के 25 प्रतिशत लोग मधुमेह के साथ जी रहे हैं। पूर्व मधुमेह की स्थिति की जांच करना आवश्यक है और रक्त शर्करा के स्तर की निगरानी करने से रोग को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है।
8. इन्फ्लुएंजा और निमोनिया रोग का होना :
सीडीसी के अनुसार, 65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में फ्लू और निमोनिया के संक्रमण के शीर्ष आठ कारणों में से एक हैं। बुजुर्ग व्यक्ति इन बीमारियों की चपेट में अधिक आते हैं और उनसे लड़ने में सक्षम नहीं होते हैं। टीकाकरण इन संक्रमणों के लिए बुजुर्गों निपटने की क्षमता प्रदान कर सकता है।
9. बुजुर्ग व्यक्तियों के फिसलने की समस्या :
सीडीसी रिपोट्स के अनुसार, 65 वर्ष और उससे अधिक उम्र के 2.5 मिलियन लोगों का इलाज आपातकालीन विभागों में गिरने के कारण होता है। बुजुर्गों को सावधानी से चलना चाहिए और फिसलन वाले स्नान कक्षों का उपयोग करने से बचना चाहिए।
10. व्यक्ति का मोटा हो जाना :
मोटापा हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर के लिए एक महत्वपूर्ण वरिष्ठ स्वास्थ्य जोखिम कारक है। यह बुजुर्गों में उच्च रक्तचाप और एथेरोस्क्लेरोसिस जैसी विभिन्न जटिलताओं के बढ़ने ओर अग्रसर करता है।
11. बुजुर्ग व्यक्ति का अवसाद में रहना :
सीडीसी के अनुसार कई बुजुर्ग अवसाद से पीड़ित होते हैं। मित्रों और परिवार से सहायता और सामाजिक मेलजोल में वृद्धि से बुजुर्गों में अवसाद को रोका जा सकता है
12. मुँह के स्वास्थ की समस्या :
कार्यात्मक और शारीरिक परिवर्तनों के कारण बुजुर्गों में मौखिक स्वास्थ्य से समझौता हो जाता है। नियमित मूल्यांकन के लिए बुजुर्गों को हर 6 महीने के बाद दंत चिकित्सक से मिलने की सलाह दी जाती है। दंत चिकित्सकों द्वारा बुजुर्गों में दंत स्वास्थ्य को बहाल करने के लिए दंत चिकित्सा और मौखिक पुनर्वास के उपाय किए जाते हैं।
13. दाद के होने की समस्या :
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार , 60 में से तीन लोगों में से एक को दाद मिलेगा। जो लोग बचपन में चिकन पॉक्स से पीड़ित होते हैं, वे उम्र बढ़ने के साथ दाद का सामना करते हैं। एक अच्छी प्रतिरक्षा प्रणाली और अच्छी स्वास्थ्य स्थिति बुजुर्गों को तेज गति से दाद से उबरने में मदद करती है।
सोर्सेज़:
https://www.britannica.com/science/old-age
प्रशामक देखभाल, जिसे कम्फर्ट केयर (आराम देखभाल), सपोर्ट केयर (सहायक देखभाल) और सिमटम मैनेजमेंट (लक्षण प्रबंधन) भी कहा जाता है, उन मरीज़ों के जीवन की गुणवत्ता को सुधार सकती है, जिन्हें कोई गंभीर या जानलेवा बीमारी है। जीवन के अंत के पास होने वाले शारीरिक बदलावों के लिए उन्हें तैयार करते हुए, मरीज़ों और उनके प्रियजनों के लिए बीमारी के इलाज या कंट्रोल हेतु उपचार से मरणासन्न-आश्रय देखभाल की ओर ट्रांज़ीशन करना सहायक है। यह उन्हें उत्पन्न होनेवाले विभिन्न विचारों और भावनात्मक मुद्दों से निपटने में भी उन्हें मदद करता है और परिवार के सदस्यों के लिए समर्थन प्रदान करता हैं। प्रशामक देखभाल विशेषज्ञ केयरगिवर सपोर्ट (देखभालकर्ता सहायता) भी प्रदान करते हैं, हेल्थकेयर टीम के सदस्यों के बीच संवाद की सुविधा प्रदान करते हैं, और मरीज़ की देखभाल के लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करते हुए चर्चा करते हैं।
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शोक हानि के अनुभव के लिए व्यक्ति की एक भावनात्मक प्रतिक्रिया है जबकि वियोग किसी हानि का अनुभव होने की स्थिति है। हानि के प्रति प्रतिक्रियाओं को शोक की प्रतिक्रियाएँ कहा जाता हैं। सामान्य शोक की प्रतिक्रियाओं में कठिन भावनाएँ, विचार, शारीरिक संवेदनाएँ और व्यवहार शामिल हैं। जिन लोगों ने हानि का अनुभव किया होता हैं उनमें कई तरह की भावनाएँ आतीं हैं। इसमें सदमा, सुन्नता, उदासी, इनकार, निराशा, चिंता, क्रोध, अपराधबोध, अकेलापन, अवसाद, लाचारी, राहत और तड़प शामिल हो सकतीं हैं।
आम विचार पैटर्न में अविश्वास, भ्रम, ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, सनक और मतिभ्रम शामिल हैं। शोक शारीरिक संवेदनाओं को जन्म दे सकता है। इनमें शामिल हैं छाती या गले में जकड़न या भारीपन, मतली या एक परेशान पेट, चक्कर आना, सिरदर्द, शारीरिक सुन्नता, मांसपेशियों में कमज़ोरी या तनाव और थकान। यह आपको बीमारी की चपेट में भी ला सकता है। कोई व्यक्ति जो शोक कर रहा है वह सो पाने या सोए रहने के लिए संघर्ष कर सकता है और यहाँ तक कि सुखद क्रियाओं के लिए भी ऊर्जा खो सकता है।
विलाप के चरणों में शामिल हैं हानि की वास्तविकता को स्वीकार करना, शोक की पीड़ा से गुज़रना, शारीरिक रूप से अनुपस्थित व्यक्ति के बगैर जीवन को एडजस्ट (समायोजित) करना और उस मृत व्यक्ति से जुड़े रहने के नए तरीक़े खोजना। शोक की प्रक्रिया अकसर और कठिन होती है, जब व्यक्ति की उस मृत व्यक्ति के साथ अनसुलझी भावनाएँ हों या उसके प्रति संघर्ष हों।
https://osterreichische-apotheke.com/kaufen-kamagra-oral-jelly/
किसी प्रियजन की मृत्यु के बाद का वर्ष बहुत भावुक होता है। मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट (मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ) सुझाव देते हैं कि कोई भी बड़ा निर्णय लेने से पहले कम से कम एक साल का इंतज़ार करना चाहिए, जैसे कि घर बदलना या नौकरी बदलना। निर्णयों और कार्यों की एक सूची बनाने पर विचार करें, और यह पता लगाए कि कौन से काम तुरंत पूरे किए जाने चाहिए। ऐसे महत्वपूर्ण निर्णयों को कुछ देर तक टालने की कोशिश करें जो प्रतीक्षा कर सकते हैं। वर्षगांठ, जन्मदिन और उत्सव के अवसर बहुत मुश्किल भरे हो सकते हैं, ख़ासकर पहले वर्ष के दौरान। समय के साथ, ये भावनाएँ अकसर कम तीव्र हो जाएंगी। किसी वर्षगांठ, जन्मदिन को मार्क करने हेतु कुछ विशेष करना या अपने रिश्तेदार या दोस्त को याद करने के लिए किसी उत्सव के लिए समय निकालना आपके लिए मददगार साबित हो सकता है।
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खाने के विकारों में भूमिका निभाने वाले कारक क्या हैं?
एनोरेक्सिया नर्वोसा में क्या होता है?
बुलिमिया में क्या होता है?
खाने के विकारों का पता लगाना और उनका इलाज करना क्यों महत्वपूर्ण है?
क खाने की गड़बड़ी का पता कैसे लगाया जा सकता है?
कुछ मुख्य संकेत हैं जो इन स्थितियों का पता लगाने में मदद कर सकते हैं।
भोजन विकार के लक्षण और पहचान :
एक खाने के विकार से पीड़ित एक पुरुष या महिला कई संकेत और लक्षण प्रकट कर सकते है, इनमे से कुछ निम्न हैं :
किसी व्यक्ति में खाने के विकार को कैसे प्रबंधित किया जाता है?
क्या व्यक्ति में खाने के विकारों को रोका जा सकता है?
इन सरल उपायों का पालन करके खाने के विकारों को रोकना संभव है।
सोर्सेज़:
https://www.psychiatry.org/patients-families/eating-disorders/what-are-eating-disorders
https://www.eatingdisorderhope.com/information/eating-disorder
व्यक्ति को स्वस्थ आहार लेना क्यों जरूरी है?
व्यक्ति को अच्छे आहार के लिए क्या-क्या अनिवार्य होता हैं
व्यक्ति आहार असंन्तुलन से कैसे बचे :
कुछ सरल जीवनशैली की आदतों को ध्यान में रखते हुए व्यक्ति को भोजन की अनुशासनहीनता से बचने में मदद मिल सकती है।
सोर्सेज़:
https://www.webmd.com/children/kids-healthy-eating-habits
https://www.livestrong.com/article/545644-self-discipline-in-eating-and-exercising
उपचार लागत
यूनियन फॉर इंटरनेशनल कैंसर कंट्रोल (अंतरराष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण संघ) द्वारा चलाई जा रही विश्व कैंसर दिवस (वर्ल्ड कैंसर डे) की वेबसाइट का कहना है, "यह एक मिथक है कि कैंसर केवल एक स्वास्थ्य-संबंधी मुद्दा है। दरअसल, कैंसर परिवारों की आय कमाने की क्षमता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है, व उच्च उपचार लागतों के साथ उन्हें ग़रीबी की ओर और धकेलता है।"
भारत सरकार के राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण कार्यक्रम का अनुमान है कि किसी भी समय देश में 2 से 2.5 मिलियन कैंसर के मरीज़ हैं। 2010 में एक बीसीजी अध्ययन के अनुसार, वर्तमान में मौजूद 200 कैंसर केंद्रों के विपरीत, भारत को कम से कम 840 की आवश्यकता थीं। यह अनुमान है कि भारत में केवल 2000 ऑन्कोलॉजिस्ट हैं, जबकि इससे तीन गुना की आवश्यकता है। यह स्पष्ट है कि डॉक्टरों की कमी कैंसर देखभाल प्रदान करने वाले अस्पतालों की संख्या को नुकसान पहुँचाएगा। एक फुल-फ्लेज (सभी सुविधाओं वाले) कैंसर अस्पताल की स्थापना करना कैपिटल-इंटेंसिव (पूंजी-गहन) होता है - एक शहर में 100-बिस्तर के अस्पताल में कथित तौर पर 50 करोड़ की लागत आ सकती है। और मानव संसाधन भी, डॉक्टरों से लेकर नर्सों तक और तकनीशियनों तक,
एक सतत चुनौती है।
कैंसर के इलाज में लाखों रुपये लगते हैं, विशेषकर जब एडवांस्ड स्टेज (उन्नत चरणों) में रोग का पता चलता है, जिसमें सर्जरी या व्यापक उपचार की आवश्यकता पड़ती है। एक अनुमान के अनुसार, एक कैंसर रोगी वाले 45 से अधिक प्रति शत परिवारों को भयावह ख़र्चो का सामना करना पड़ता है और 25 प्रति शत गरीबी रेखा (बीपीएल) से नीचे धकेल दिए जाते हैं। बढ़ते हुए खर्चों से निपटने का एकमात्र तरीक़ा है मेडिकल बीमा और चूंकि भारत ने स्वास्थ्य में बहुत अधिक निवेश नहीं देखा है, इसलिए आगे यह एक लंबा रास्ता है।
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कीमोथेरेपी कैंसर के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला उपचार है और कैंसर के उपचार के लिए इस्तेमाल की जाने वाली औषधियों को निर्देशित करता है जिसके उद्देश्य हैं इलाज, कंट्रोल और उपशमन।
अधिकांश कीमोथेरेपी (कीमो) औषधियाँ तेज़ दवाइयाँ होतीं हैं जिन्हें आमतौर पर नियमित अंतराल पर दिया जाता है, जिन्हें चक्र (साइकिल) कहा जाता है - जो एक या एक से अधिक औषधियों की खुराक होती है और बाद में कई दिन या हफ़्ते बिना उपचार के होते हैं। यह सामान्य सेल्स को औषधि के दुष्प्रभावों से उबरने का समय देता है।
अधिकतम लाभ के लिए, व्यक्ति को कीमो का पूरा कोर्स, पूरी खुराक प्राप्त करनी चाहिए और साइकिल को शेड्यूल पर रखना चाहिए। ज़्यादातर मामलों में, विशेष कैंसरों के उपचार के लिए औषधियों के सबसे प्रभावी खुराक और शेड्यूल क्लिनिकल ट्रायल्स (नैदानिक परीक्षणों) में टेस्ट करके खोजें गए हैं।
दुष्प्रभाव
भले कीमो औषधियाँ तेज़ी से बढ़ने वाले सेल्स को मारतीं हैं, वे दुष्प्रभाव के रूप में स्वस्थ सेल्स को भी नुकसान पहुँचाते हैं। कुछ दुष्प्रभावों से उबरने के लिए लिया गया समय एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में अलग-अलग होता है और यह आपके संपूर्ण स्वास्थ्य और आपको दी जाने वाली औषधियों पर निर्भर करता है। कई दुष्प्रभाव उपचार समाप्त होने के बाद काफ़ी जल्दी चले जाते हैं, लेकिन कुछ को पूरी तरह से दूर होने के लिए महीने लग सकते हैं।
कीमोथेरेपी के कुछ अधिक सामान्य दुष्प्रभाव हैं थकान, बालों का झड़ना, एनीमिया (रक्ताल्पता), मतली और उलटी, कब्ज, दस्त, घाव और निगलने पर दर्द होना। बालों का झड़ना कीमो उपचार का एक सामान्य दुष्प्रभाव है, लेकिन यह अस्थायी है क्योंकि अंतिम उपचार के बाद कुछ सप्ताहों में नए बालों आने शुरू हो जाते हैं।
वज़न कम होना और ऊर्जा की कमी समान रूप से आम है जिससे स्वस्थ खाद्य पदार्थों को खाना जारी रखना आवश्यक हो जाता है। कीमोथेरेपी का एक और आम दुष्प्रभाव डाइजेशन (पाचन) को प्रभावित करता है और आपके मुंह में मैटेलिक (धातु जैसा) स्वाद आ सकता है या आपकी जीभ पर कोई पीली या सफेद परत आ सकती है। मरीज़ को वायरस, बैक्टीरिया और अन्य कीटाणुओं के संपर्क में आने से बचना चाहिए क्योंकि कीमो के दौरान इम्यून सिस्टम कमज़ोर हो जाता है।
कीमोथेरेपी औषधियों से याददाश्त की समस्याएँ हो सकती हैं और ध्यान केंद्रित करना या स्पष्ट रूप से सोचना मुश्किल हो सकता है। इस लक्षण को कभी-कभी "कीमो फॉग" ("कीमो कोहरा") या "कीमो ब्रेन" ("कीमो दिमाग़") कहा जाता है। कीमोथेरेपी औषधियों से हार्मोन में परिवर्तन हो सकता है और इसके परिणामस्वरूप मूड स्विंग हो सकते हैं। कुछ मामलों में यौन क्रिया और फर्टिलिटी (प्रजनन क्षमता) भी प्रभावित हो सकती है।
कैंसर के साथ जीना और कीमोथेरेपी को संभालना भावनात्मक रूप से नुकसान पहुँचा सकता है। मरीज़ों को यह ज़बरदस्त लग सकता है और वे उदास भी हो सकते हैं जैसे वे काम, परिवार, और वित्तीय जिम्मेदारियों को टटोलते हैं या दर्द और परेशानी से निपटते हैं।
मालिश और ध्यान जैसी कॉम्प्लीमेंटरी थेरेपियाँ (पूरक चिकित्साएँ) आराम और राहत के लिए एक सहायक उपाय हो सकतीं हैं। कैंसर सहायता समूह, जहाँ आप कैंसर के उपचार से गुज़रने वाले अन्य लोगों के साथ बातचीत कर सकते हैं, सहायक होते हैं, लेकिन यदि अवसाद की भावनाएँ बनीं रहें, तो पेशेवर काउंसिलिंग की आवश्यकता पड़ सकती है।
उपचार लागत
यूनियन फॉर इंटरनेशनल कैंसर कंट्रोल (अंतरराष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण संघ) द्वारा चलाई जा रही विश्व कैंसर दिवस (वर्ल्ड कैंसर डे) की वेबसाइट का कहना है, "यह एक मिथक है कि कैंसर केवल एक स्वास्थ्य-संबंधी मुद्दा है। दरअसल, कैंसर परिवारों की आय कमाने की क्षमता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है, व उच्च उपचार लागतों के साथ उन्हें ग़रीबी की ओर और धकेलता है।"
भारत सरकार के राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण कार्यक्रम का अनुमान है कि किसी भी समय देश में 2 से 2.5 मिलियन कैंसर के मरीज़ हैं। 2010 में एक बीसीजी अध्ययन के अनुसार, वर्तमान में मौजूद 200 कैंसर केंद्रों के विपरीत, भारत को कम से कम 840 की आवश्यकता थीं। यह अनुमान है कि भारत में केवल 2000 ऑन्कोलॉजिस्ट हैं, जबकि इससे तीन गुना की आवश्यकता है। यह स्पष्ट है कि डॉक्टरों की कमी कैंसर देखभाल प्रदान करने वाले अस्पतालों की संख्या को नुकसान पहुँचाएगा। एक फुल-फ्लेज (सभी सुविधाओं वाले) कैंसर अस्पताल की स्थापना करना कैपिटल-इंटेंसिव (पूंजी-गहन) होता है - एक शहर में 100-बिस्तर के अस्पताल में कथित तौर पर 50 करोड़ की लागत आ सकती है। और मानव संसाधन भी, डॉक्टरों से लेकर नर्सों तक और तकनीशियनों तक, एक सतत चुनौती है। कैंसर के इलाज में लाखों रुपये लगते हैं, विशेषकर जब एडवांस्ड स्टेज (उन्नत चरणों) में रोग का पता चलता है, जिसमें सर्जरी या व्यापक उपचार की आवश्यकता पड़ती है। एक अनुमान के अनुसार, एक कैंसर रोगी वाले 45 से अधिक प्रति शत परिवारों को भयावह ख़र्चो का सामना करना पड़ता है और 25 प्रति शत गरीबी रेखा (बीपीएल) से नीचे धकेल दिए जाते हैं। बढ़ते हुए खर्चों से निपटने का एकमात्र तरीक़ा है मेडिकल बीमा और चूंकि भारत ने स्वास्थ्य में बहुत अधिक निवेश नहीं देखा है, इसलिए आगे यह एक लंबा रास्ता है।
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